मेवाती शायरी

था मेव मरखणा-मरदाना ऐसा ,
जो शेरन को मुंह हे फाडे हा,
जिनके रण की हुंकार के मारे!
दिल्ली के सुलतान भी कांपे हा!
लडते भिडते कुर्बानी देके,
कुटब, कोम की लाज वो राखे हा!

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