मेवाती कविता
सीस नीचे पग उँचे, फँसा था गर्भगाँठी में,
आया रोता पीता था दुध सोता था पाठी में।
रेंगण लागा अंगन में खाने लगा माटी में,
फिर आया जुवानी में फिरन लगा आटी में॥
जब आया जरठपन, काँपा है साठी में,
चित्त गया चाटी में और दिन गये खाटी में।
कहे ‘निपट निरंजन', सुनो गँवार मन,
जनम खोय दियो तैने यूँही सारी माटी में
#निरंजन
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